शनि की साढ़ेसाती कष्टदायी, फिर फलदायी

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शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव

अगर कुंडली में शनि की साढ़ेसाती चल रही हो, तो यह आपकी परीक्षा का समय है । शनि आपकी परीक्षा लेकर आपको और मजबूत बनातें हैं

शनि ग्रह का नाम सुनते ही हमारे भीतर एक डर व्याप्त हो जाता है । फिर जब कुंडली में शनि कि ढैया या साढ़े साती का चक्र चलने की बात ज्योतिष करतें हैं, तो लोग और अधिक भयाक्रांत हो जातें है । लेकिन कई बार मनीषियों ने यह साबित किया है कि शनि भगवान जितने डरावने या क्रूर प्रतीत होतें है, उतने होतें नहीं हैं । भले ही यह जीवन में कितनी भी बार अपना प्रभाव दिखाएं । हर बार जातक को कुछ न कुछ अच्छा फल देकर ही जाते हैं शनि भगवान । वैसे हर जातक कि कुंडली में इनका भ्रमण काल सुनिश्चित हैं और हर राशि में इनका प्रवेश होता हैं ।

१२ राशियों के पथ को पूरा करने में शनि को लगभग ३० वर्ष का समय लगता हैं । इस प्रकार से शनि धीरे -धीरे ६० वर्षों में दो आवृत्ति और ९० वर्ष में तीन आवृत्ति राशि चक्र की पूरी करतें हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि एक दीर्घायु व्यक्ति के जीवन में साढ़ेसाती दो या अधिक से अधिक तीन बार आती हैं ।

पहली साढ़ेसाती का आक्रमण बड़े वेग के साथ जातक पर होता हैं और जातक को अनेक प्रकार की परेशानियां देता हैं । दूसरी साढ़ेसाती का वेग पहली साढ़ेसाती की अपेक्षा कुछ धीमा होता हैं इसके बाद अंतिम साढ़ेसाती का प्रभाव थोड़ा अधिक होता हैं ।

जन्म राशि से बारहवीं राशि में शनि के आने पर साढ़ेसाती सिर पर होती हैं, इसे चढ़ती साढ़ेसाती कहतें हैं । इस समय जातक के व्यय की मात्रा बढ़ जाती हैं और अकस्मात धन हानि की सम्भावना बनी रहती हैं । जातक कुछ समय तक शांतिपूर्वक एक स्थान में वास करने में असमर्थ होता हैं और उसका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रहता हैं ।

अगर शनि का आगमन जन्म राशि में हो जाये, तो ढाई वर्ष के लिए साढ़ेसाती ह्रदय पर रहती हैं । इस दौरान जातक के मन में अशांति, धन का व्यय अथवा हानि, कार्यों में विघ्न-बाधाएं आती हैं । जब अंतिम ढाई वर्ष में शनि दूसरी राशि में आता हैं, तो इसे पैरों पर उतरती साढ़ेसाती कहतें हैं । इस समय जातक का इष्ट मित्र, सम्बन्धियों से अनायास ही द्वंद होता हैं और जातक के परिवार के लोगों को रोग अथवा उनमें से किसी की मृत्यु भी हो सकती हैं ।

शनि अपनी साढ़ेसाती के दौरान किसी को प्रारम्भ में, किसी को मध्य में तथा किसी को अंत में अशुभ फल भी देते हैं । शनि को अनुशासन अति प्रिय हैं । उन्हें क्षमा करना नहीं आता, साढ़ेसात वर्षों में यह जातक की खूब परीक्षा लेते हैं । फिर अंत में जाते समय उसके सरे पापों को वैसे ही शुद्ध कर देतें हैं, जैसे प्रचंड अग्नि सोने को तपाकर कुंदन कर देती हैं । फिर भी शनि के दुषप्रभाव से इन उपायों को अपनाना चाहिए :

शनि के दुषप्रभाव से बचने के उपाय :-

(१) शनिवार को हनुमान जी की आराधना व दर्शन करने से शनि शांत रहतें हैं ।
(२) शनिवार को पीपल के नीचे दीया जलाने से शनि का दुष्प्रभाव दूर होता हैं । यदि दीये में तिल का तेल प्रयोग किया जाये, तो अच्छा रहेगा ।
(३) शनि को शांत रखने के लिए बीच की अंगुली में काले घोड़े के नाल या नाव की कील से बना छल्ला पहनना उचित रहेगा ।
(४) शिव भगवान की आराधना व महाम्रत्युन्जय मन्त्र का जप करने से भी शनि अनुकूल होतें हैं ।
(५) एक निश्चित संख्या तक लगातार शनिवार को उपवास करें और काली दाल से बनी खिचड़ी का प्रसाद बाटें ।
(६) तिल बांटने का भी विधान हैं ।

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